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मंगळवार, २८ मे, २०१९

जन्मगाठ

तुकड्या तुकड्यांत विखुरलेला मी
तुला एकवटून असा भेटलोच नाही
आजन्म निखाऱ्यात जळतो विरहाच्या
समोर तुझ्या मात्र कधी पेटलोच नाही

एक ओली किनार तुझ्या सांजजाणीवेची 
एक वळीवाच्या उन्हाचा तीक्ष्ण बाण
तुझ्या फडफडत्या पदराच्या सावलीआड
माझ्या तेवत्या निरंजनाचे पंचप्राण

तुझ्याकडे नेणाऱ्या अनोळखी वाटेवर
कशास मांडलेस हे दग्ध धूसर भाव
मावेल ना तुझ्या विजेच्या मिठीत
माझ्या मनाचे हे मुठीएवढे गाव

तुझ्या सूर्यास्ती लाल क्षितिजावर
माझे नाव बोटांनी गोंदून ठेव
रात्रीच्या तारकामंडळात कुठे क्षीणसे
या काजव्याचे चमकणेही नोंदून ठेव

हे खोल आतल्या उर्मीचे आवेग आहेत
हा कोरड्या आकर्षणाचा बनाव नाही
कुठेतरी एक जन्मगाठ असेल बांधलेली
हा फक्त जाणीवांचा एकांगी लगाव नाही




सोमवार, २० मे, २०१९

और ये भी

यूँही ये दिल कभी खुश कभी उदास सा रहता है
और ये भी कि इसमे कोई शक्स खास सा रहता है

मै उसके नाम की एक नज्म भी लिख नाही पाता
और ये भी कि वो जेहन में उपन्यास सा रहता है

यूँ तो मै उसे सारी कायनात मे ढूँढता फिरता हूँ
और ये भी कि वो मेरे सीने मे साँस सा रहता है

मैने उसे दिल में बहोत अंदर कहीं छुपाकर रखा है
और ये भी कि वो मेरे जिकरों में बिंदास सा रहता है

गर नापो तो सदियों की दूरियाँ हैं हमारे दरमियाँ
और ये भी कि वो हर पल कुछ पास सा रहता है

वो मिलेगा हमको ये उम्मीद तो कईँ बार टुट गई
और ये भी कि वो हमारा है ये आभास सा रहता है

मैंने कईँ दफा उसे अपने मुस्तकबिल में देखा है
और ये भी कि वो यादों में इतिहास सा रहता है
(मुस्तकबिल-भविष्य)

मुझको पता है वो कभी मुझे मिल नहीं सकता
और ये भी कि हरपल उसका एहसास सा रहता है

हर ख़याल में मैंने इस मुहब्बत को लबरेज पाया है
और ये भी कि वो मेरी हसरतों में प्यास सा रहता है
(लबरेज-तृप्त, पूर्ण)