सांँसों का थोडा पंगा सी, जुबाँ पे जरा अडंगा सी
झूठ नही बोलता मै, मुल्क में बाकी सब चंगा सी
फिजा मे नफरतों का जहर सी, सुबह भी दोपहर सी
भाईचारे की बात करो तो, भडकता है यहाँ दंगा सी
झूठ नही बोलता मै, मुल्क में बाकी सब चंगा सी
सियासी हिसाब पे पर्दा सी, सिस्टीम बनी मुर्दा सी
चोर हैं शाही लिबासों में, और राजा भइल नंगा सी
झूठ नही बोलता मै, मुल्क में बाकी सब चंगा सी
बढती बिमारी ए करोना सी, हर इक आँख में रोना सी
हवाओं में इतना मातम फैला, कि झटपटाता तिरंगा सी
झूठ नही बोलता मै, मुल्क में बाकी सब चंगा सी
इलाज मिलने में देर सी, अस्पतालों में लाशों के ढेर सी
जानेवाली जानें हैं सस्ती, दवा का इंतजाम महंगा सी
झूठ नही बोलता मै, मुल्क में बाकी सब चंगा सी
फेफडों में आक्सिजन कम सी, शमशानों में मातम सी
किसने फैलाई ये आग, किसका दामन खून में रंगा सी
झूठ नही बोलता मै, मुल्क में बाकी सब चंगा सी
हर शक्स यहाँ मजबूर सी, हुकुमत बडी ही मगरूर सी
पाप क्या, खुद को धोते धोते, थक गयी नमामी गंगा सी
झूठ नही बोलता मै, मुल्क में बाकी सब चंगा सी
यारियाँ मजहबों में बांँटी सी, हर एक आवाज काटी सी
कलम रोक ले लिब्रांडू, वरना मिल जायेगा कहीं टंगा सी
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