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गुरुवार, ४ जुलै, २०१३

बीत गया

कब मिली, कब ढली ज़िंदगी याद नही..
पचास सालका सफ़र इक लम्हासा बीत गया..!!

बस कशमकश में रहे संजने-संवरने की,
और बिना मनाए हर जलसा बीत गया..!!

शब और सहर में ही उलझी रही
उमर,
हर एक आज हमारा, कलसा बीत गया..!!

रोज़गार का क़ानून चर्चा में फँसा रहा,
बच्चोंकी भूख में बचा-बचाया, पैसा बीत गया..!!

घर बह गये हज़ारोंके, तो वो रिपोर्टर बहुत रोया..
"हाय बिना फुटेजके ही ये हादसा बीत गया..!!"

चंद अच्छी बातें सुनूँ तो शायद चैन आये..
मगर पिछले मोड़ पर ही, मदरसा बीत गया..!!

उसका दीदार भी काले बादल जैसा,
मिनट दो मिनटभर बरसा.... बीत गया..!!!

हम तो हारे मगर वो भी कहां जीत पाया..
बिना नतीजे के ये किस्सा बीत गया..!!

कुछ इस तरह की उसने बेवफ़ाई कि,
यकीं तो हुआ मगर, भरोसा बीत गया..!!!

अब एहसास नही होता, या आदतसी हो गयी..
मनाया भी नही और हमारा, गुस्सा बीत गया..!!

दुख तो पहले भी था मगर अब,
तेरे बाजुओंसे लिपटने का, दिलासा बीत गया..!!

इश्क सूना है हँसाता है, और रुलाता भी..
हमें तो हँसाए हुए, अरसा बीत गया..!!

कलयुग में किस पयम्बर को पुकारता है 'अस्मादिक'..
दो हज़ार साल पहले ही ईसां बीत गया..!!

(शब-night, सहर-morning)
(पयम्बर=prophet, ईसां=Jesus Christ)

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