सदियों से एक ख्वाब आँखों में टुटा हुआ है
आ भी जाओ कि अब के सावन रुठा हुआ है
उपरी मुस्कान की दौलत पे न जाना दोस्तों
मुझे अंदर से किसीने पुरी तरह लूटा हुआ है
तुमने लबों से छुए थे जिस नज्म के चंद लफ्ज
उसके मिसरे ने कहा कि एक शेर जुठा हुआ है
कभी सोचा नही था की हम इतना सोचेंगे तुम्हें
ये एहसास नया है, इस बार कुछ अनुठा हुआ है
तुम सुकुन की बरसात बनकर यहाँ आ जाओ
मुझमें जज्बातों का लावा कबसे फुटा हुआ है
ये कैसा वक्त है कि इमाँ के मानी ही बदल चुकें
मैने जो सच कहा था वो भी अब झुठा हुआ है
तुम अपने नाम की ठंडी महक सांँसों में दे जाना
इस गुमनामी से मेरे वजूद का दम घुटा हुआ है
मै उजालों के बोझ लिये धूप धूप जलता रहा
और वो कहता है कि राहुल और कलुटा हुआ है
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