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शुक्रवार, १४ ऑक्टोबर, २०२२

तख़ल्लुस


इक इतने से तख़ल्लुस का, कितना बडा बोझ था
सुकून बस इक पल का, और दर्द कईं रोज था

कुछ अनकही दास्तानों में ही खोया रहा उम्रभर
न बना किसी का साहीर, ना मै कोई इमरोज था

तुम थे मेरे ग़म और ख़ुशी दोनों का ही ज़रिया
मरहम था तेरा पास आना, दूर जाना सोज़ था

दुनिया से ताउम्र लड़ता ही रहा हूँ अपनी जंगें
कभी था अकेला सिपाही, कभी मै पूरी फौज था

जिंदगी के तजुर्बे ने सिखाया कि मेरी कहानी में
हक़ीक़त थी गंगू तेली, पर ख्वाब राजा भोज था

सरहदें तोड़नी चाहीं मगर अपने दायरे में ही रहा
मै किनारे से टकराकर, मिट जानेवाली मौज था

राहुल तेरी क़ीमत इस दुनिया में होगी ही कितनी
तू किसी से था खोया, और किसी की खोज था






*तखल्लूस-शायरीतले नाव
*ज़रिया-Source
*सोज़-दुःख


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