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सोमवार, २३ जानेवारी, २०२३

आजकल कुछ लिख नही रहा


आजकल कुछ लिख नही रहा
आजकल कुछ ठीक नही रहा

हर जुल्मपे आवाज उठानेवाला
आजकल कुछ चीख नही रहा

आँखों में कितने अक्स थे तेरे
आजकल कुछ दिख नही रहा

क्या देश पूरा नीलाम हो गया?
आजकल कुछ बिक नही रहा

हर चीज संजोए रखी थी कभी
आजकल कुछ टिक नही रहा

उम्रभर एक नाम के क़सीदे पढ़े
आजकल कुछ सीख नही रहा

वो याद नहीं करती, अत: राहुल
आजकल कुछ छींक नही रहा



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