"आज अट्ठाईसवाँ मिल गया, उसका नाम है अमोल लांडे", रघुने मुझे आते ही यह खबर सुनाई। रघु मेरा बहुत ही अच्छा दोस्त है। ये उन दिनोंकी बात है, जब हम हाईस्कूल में पढ़ा करते थे। हम दंसवी में थे और रघु आंठवी कक्षा में पढनेवाली पूजा से बेहद प्यार करता था। वैसे पूजा खुद ही इतनी प्यारी थी कि रघु के अलावा कई सारे लडके भी उसे उतनाही बेहद प्यार करते थे। रघु उन सभी की जानकारी रखता था, जो उसके हिसाब से उसके दुश्मन यानि पूजा को चाहनेवाले थे। यह अमोल लांडे उसकी लिस्ट में ऐसा अट्ठाईसवाँ दुश्मन था। मै रघु से पूछा करता के इन सभी की ऐसे लिस्ट बनाकर तू क्या करेगा? वह मजाक में कह देता कि सबको मार डालूँगा।
पूजा का घर रघु के घर के बिल्कुल सामने ही था। रघु के आँगनसे पूजा का घर साफ़ साफ़ दिखाई देता था। रघु हमेशा आँगन में चारपाई डालकर उसपे लेटेलेटे पूजा के घर की तरफ टकटकी लगाए बैठता। स्कुल जाने के वक्त वह आँगन में आकर खड़ा होता, और जब पूजा अपने घर से निकल कर मोड़ से रास्ते तक पहुंचती, तब जाकर वो पीछे से निकलता। हर रोज रघु पूजा के पीछे पीछे चलकर स्कुल आता। रघु बताता था कि जब वो बहुत छोटा था, तब हमेशा वह पूजा के साथ खेलता था। तब दूल्हा-दुल्हन के खेल में पूजा अक्सर उसकी दुल्हन बन जाती थी। मगर फिलहाल के दो चार सालोंसे उसने खुद होकर पूजा से बात भी नहीं की। वो डरता है कि कहीं बातों बातों में पूजा को पता न चल जाए कि वो उसके बारे में क्या सोचता है। पूजा जब कभी उसके घर आती है, तो वो छुप जाता है। और वैसे ही छुप छुप कर उसे देखता है। उसे ये भी डर सताता है कि बचपन में पूजा उसे रघु भैय्या कहती थी, तो कहीं अब भी वो आदतन उसे भैय्या ही ना कह दें।
जब भी रघु और मै एकसाथ होतें, तो रघु केवल पूजा ही के बारे में बातें करता रहता। पूजा ने आज ये पहना है। पूजा ने आज दो चोटी बाँधी हैं। पूजा आज घर से सीधे स्कुल नहीं आयी, बीच में गौरी जनरल स्टोअर्स में रुककर उसने एक पेन ख़रीदा। पूजा को डेरी मिल्क बहुत पसंद है। उसके घर में सचिन तेंडुलकर की बहुत बड़ी फ़ोटो है। और ऐसी ही हजारो बातें रघु करता रहता। मै कभी उसको सुनता, कभी अनसुना कर देता। लेकिन रघु को मेरे लगाव या अलगाव से कोई फर्क ना पड़ता। वो तो पूजा के बारे में बस बातें करता ही जाता। कभी हम गाँव से बाहर हरियाली पर लेटे लेटे आकाश को तांकते रहते, तो रघु कहता, "अगर पूजा साथ होती तो कितना अच्छा होता"। कभी हम नदी में तैर रहे होते, तो रघु को याद आता कि पूजा को गहरे पानी से बहोत डर लगता है। फिर वो कहता कि अगर पूजा अब यहाँ आये और गलती से पानी में गिर जाए, तो मै उसे तैरकर पार ले जाऊँगा। मै कहता, "कमीने, जिससे प्यार करता है, उसे पानी में गिराने के बारे में सोचता है?" यह सुनकर वह हड़बड़ा जाता कि कैसे उसने भावना में बहकर अपनी पूजा के बारे में ऐसा बुरा सोचा। फिर वह अपने ही आप अपने गाल पर दो तमाचे जड़कर उस गुनाह की सजा ले लेता। और कहता, "मेरी प्यारी पूजा, मुझे माफ़ कर दो।" उसकी ऐसी हरकतोंपर मै उसे खूब डाँटता। कहता, अबे गधे मैंने तुझे यूँही उल्लू बनाया, ये कोई बड़ी बात नहीं थी। बेकार में तूने अपने गाल लाल करा लिए। फिर मै जोर जोर से उसपर हँसता रहता। लेकिन रघु कहता "चाहे ये कोई बड़ी बात ना हो, लेकिन पूजा को कोई तकलीफ हो, ये मै बर्दाश्त नहीं कर सकता। उसे तो सिर्फ हँसते रहना चाहिए। उसके दामन में सिर्फ ख़ुशी ही ख़ुशी होनी चाहिए। उसे तो कल्पना में भी कोई दुख पहुंचे ये मै सह नहीं सकता।
पिंकी हमारे पड़ोस में रहती थी और पूजा के ही क्लास में पढ़ती थी। वह पूजा की बेस्ट फ्रेंड थी। वह हमेशा हमारे घर आती, या मै उनके घर जाता। हम दोनों घरों के बच्चे मिलकर दिनभर खूब खेलते रहते। साथ बैठकर पढ़ाई करते। पिंकी को साइंस और मैथ्स थोड़ी कम समझ में आती थी। फिर मै उसे ये दोनों सब्जेक्ट सिखा देता। पूजा भी पिंकी के साथ अक्सर हमारे घर आती। मेरे साथ खेलतीं। एक दिन पूजा ने मुझसे कहा, "राहुल भैया, मुझे भी अंग्रेजी और मैथ्स समझ में नहीं आती, क्या तुम मुझे भी सिखाओगे?" मैंने कहा, "हाँ हाँ क्यों नहीं? मगर मेरी भी दसवीं कक्षा की पढ़ाई है, इसलिए ज्यादा देर तक नहीं सिखा पाउँगा। चलेगा?" वो मान गयी। फिर मै अक्सर पिंकी और पूजा दोनोंको जब भी वक्त मिले पढाने लगा। रघु कई बार मुझसे पूछता रहता कि जब वो तुझसे पढने आती है, तो क्या कभी मेरे बारे में कोई बात करती है? असल में पूजा ने कभी भी रघु के बारे में कोई बात नहीं की। लेकिन मै रघु से कहता कि "हाँ तो, कई बार वो तुम्हारा जिक्र करती है।" रघु इस बात से बड़ा खिल जाता और पूछता कि वो मेरे बारे में क्या बात करती है? मै इसपर कोई बहोत ही ढुलमुलसा झूठमुठ का जवाब दे देता, मगर मेरे उसी झूठ से सारा दिन रघु के चेहरेपर मुस्कान खिली रहती। मुझे वो बड़ा अच्छा लगता।
रघु मेरे घर कभी कभार ही आता था। वो हमेशा डरता था कि कहीं वो आये और पूजा भी उसी वक्त मेरे घर में हो, तो न जाने क्या होगा। मै कहता, "अरे पागल, उससे बात नहीं करेगा तो उसे पता कैसे चलेगा कि तू उसे चाहता है? कभी तो उसे बतायेगा? तू उसे एक बार बता तो दे, क्या पता शायद वो 'हाँ' ही कह दे।" रघु बोलता, उसे यह बात पता चल जाए और वो ना कह दे तो? "अरे ना कहेगी तो क्या? उसमे कौनसे ऐसे हीरे-जवाहरात जड़ें हैं? वो नहीं तो कोई और मिल जायेगी।" मेरे ऐसा कहने पर रघु बहोत निराश होता, और कहता, "यार तू तो ऐसी बात मत कर। पता है? ऐसे बिना कुछ कहे, बिना उसे पूछे, जीने में एक अलग मजा हैं। उसके प्रति जो मेरी भावनाएँ हैं, वह अपार आनंदकारी अनुभूतियाँ हैं। जब उसके बारे में सोचता हूँ, तो मुझे अपने खुद के होने पर नाज़ होता है। उसकी मात्र एक झलक से मन में कितनीही सुंदर सुंदर भावनाएँ उभर आती हैं। जब उसकी खिलखिलाकर हँसने की आवाज सुनता हुँ, तो मेरे कानों में कितनीही मधुर किलकारियाँ गूंजती रहती हैं। जब कभी मै मुस्कुराता हुँ, तो मेरी मुस्कराहट में वही बसी होती है। अगर मैं उसे बोल दूँ, और वो मना कर दे, तो मुझसे ये सारी भावनाएँ खो जाएँगी। और मै इन्हे कतई खोना नहीं चाहता। मैंने हैरानी से कहा, "तुझे पता है? पिंकी ने मुझे बताया था कि अमोलने पूजा को एक प्रेमपत्र लिखा था। मगर पूजा ने लेने से इनकार कर दिया। साले तू अपनी भावनाओंकोही चिपककर बैठ, और तबतक उधर वो अमोल लांडे पुरजोर कोशिश करके खुद ही पूजा से चिपक लेगा। कुछ कर कि किसी और से पहले तू ही पूजा को लपक ले।" रघु ने गुस्सा होकर कहा, "देख राहुल, पूजा के बारे में ये चिपकना और लपकना जैसी गन्दी बातोंका जिक्र करना तक मुझे अच्छा नहीं लगता। वह इन सब गन्दी बातोंसे परे है। उसके बारे में ऐसा कहना या सोचना भी पाप है। अगर फिर तुमने गलती से भी ऐसा कुछ कहा, तो अच्छा नहीं होगा।" मुझे उसका ऐसे बात करना पसंद नाही आया। फिर भी मैंने कहा, "यार तू कबतक अपनी भावनाएं यूँही छुपाकर रखेगा? क्या तुझे नहीं लगता कि वो हमेशा तेरे पास हो, तुझसे बातें करे, तू उसका हाथ अपने हाथ में लें, उसे अपनी बाहों में भरे?" रघु ने कहा, "नहीं यार, मै तो उसे छूना भी नहीं चाहता। मै चाहता हूँ कि किसी कोमल फूल की तरह वो बस अनछुई यूँही खिली रहे। उसपर जरा सी भी खरोंच न आये। मैं तो ये भी नहीं चाहता कि मै हर पल उसे देखता रहूँ, न जाने शायद मेरी नजरोंसे बहनेवाली भावनाओंकी तीव्रता से उसपर कोई आंच आये। मै बस चाहता हूँ कि वो अपने ही आप में उलझी रहे, खुद ही पे इतराती रहे, हमेशा हसती रहे, मुझे बस ये एहसास हो कि वो खुश है। मुझे बाकी कुछ भी नहीं चाहिए। मेरे लिए प्यार का मतलब, उसे छूना या सिर्फ अपने ही लिए उसे छुपाकर रखना नहीं है। उसके नाम मात्र से मेरे मनमंदिर में जो पवित्र घंटियाँ बजने लगती हैं, उसकी मुस्कराहटसे मुझे जो किसी मंदिर में बैठे हुए मंत्रों की आवाज सुनने का एहसास होता है, वही पवित्रता मेरे मनमें हमेशा कायम रहे, और उसका केवलमात्र कारण वही हो। यही मेरे लिए प्यार का मतलब है।" मै यह सुनकर दंग रह गया, पूजा के नामभर से जिसे मंदिर में होने का पवित्र एहसास होता था, उस रघु की बातें सुनते हुए मैंने मन ही मन में एक मंदिर सजा कर रघु और पूजा की मूर्तियाँ उसमें स्थापित कर लीं।
एक दिन मै रघु के साथ मंदिर जा रहा था। हमें सामने मंदिर से पिंकी और पूजा बाहर आते हुए दिखाई दीं। उन्होंने भी हमें देखा। मैंने रघु से कहा, "चल आज पूजा से तेरी बात करतें हैं।" लेकिन रघु वहाँ नहीं रुका। वह पूजा को देखते ही दबे पाँव पीछे से चला गया। मै अकेला ही आगे गया। पिंकी और पूजा दोनों मेरे पास आईं, और फिर पूजा ने मुझसे पुछा, क्या वो रघु था? मैंने कहा, "हाँ।" पूजा के चहरे पर कुछ अजीब से भाव उमड़े। उसने पूछा, "क्या वो तुम्हारा दोस्त है?" मैने कहा, "हाँ हाँ, वो तो मेरा बहुत ही अजीज दोस्त है।" पूजा बोली, "क्या? ऐसे गंदे लडके भी तुम्हारे दोस्त होंगे ये मैंने कभी सोचा नहीं था।" मैं यह सुनकर हक्का बक्का रह गया। मैंने पूजा से पूछा, "क्यूँ? क्या हुआ? क्या उसने कोई गलत हरकत की?" पूजा बोली, "एक हो तो बताऊँ ना, हमेशा मेरा पीछा करता रहता है। मुझे घूरता रहता है। उससे पीछा छुड़ाने के लिए मै किसी दूकान में घुस जाती हूँ, तो ये वहाँ भी टपक पड़ता है। मुझे हमेशा डर लगा रहता है कि कहीं वो कभी मुझे बीच रस्ते में ही पकड़कर कोई गंदी हरकत न कर दें। तुम उससे अपनी दोस्ती तोड दो तो ही अच्छा है। मुझे तो वो कोई सनकी पागल ही लगता है। और मै डरती हूँ कि कहीं वो मुझपर एसिड वैसिड न फेंक दें।
एक दिन मै रघु के साथ मंदिर जा रहा था। हमें सामने मंदिर से पिंकी और पूजा बाहर आते हुए दिखाई दीं। उन्होंने भी हमें देखा। मैंने रघु से कहा, "चल आज पूजा से तेरी बात करतें हैं।" लेकिन रघु वहाँ नहीं रुका। वह पूजा को देखते ही दबे पाँव पीछे से चला गया। मै अकेला ही आगे गया। पिंकी और पूजा दोनों मेरे पास आईं, और फिर पूजा ने मुझसे पुछा, क्या वो रघु था? मैंने कहा, "हाँ।" पूजा के चहरे पर कुछ अजीब से भाव उमड़े। उसने पूछा, "क्या वो तुम्हारा दोस्त है?" मैने कहा, "हाँ हाँ, वो तो मेरा बहुत ही अजीज दोस्त है।" पूजा बोली, "क्या? ऐसे गंदे लडके भी तुम्हारे दोस्त होंगे ये मैंने कभी सोचा नहीं था।" मैं यह सुनकर हक्का बक्का रह गया। मैंने पूजा से पूछा, "क्यूँ? क्या हुआ? क्या उसने कोई गलत हरकत की?" पूजा बोली, "एक हो तो बताऊँ ना, हमेशा मेरा पीछा करता रहता है। मुझे घूरता रहता है। उससे पीछा छुड़ाने के लिए मै किसी दूकान में घुस जाती हूँ, तो ये वहाँ भी टपक पड़ता है। मुझे हमेशा डर लगा रहता है कि कहीं वो कभी मुझे बीच रस्ते में ही पकड़कर कोई गंदी हरकत न कर दें। तुम उससे अपनी दोस्ती तोड दो तो ही अच्छा है। मुझे तो वो कोई सनकी पागल ही लगता है। और मै डरती हूँ कि कहीं वो मुझपर एसिड वैसिड न फेंक दें।
मै पूजा से क्या कहता? एसिड तो मेरे कानोंपर फेंका जा रहा था, वह रघु, जो डरता था कि कहीं उसकी नजरभरही से पूजा को कोई चोट न लग जाए, पूजा सोच रही थी कि वो उसके साथ कोई गंदी हरकत न कर दें। पीछे मंदिर में जोर जोर से घंटियाँ बज रही थी। जब भी रघु पूजा की बात करता, तो मुझे मंदिर की घंटियाँ सुनने का सुंदर एहसास होता था। मगर उस वक्त वहां मंदिर की घंटियाँ मुझे बड़ी बर्बर लग रही थी। मुझे याद आया, मैंने कहीं पढ़ा था कि सच्चा प्यार कभी परवान नहीं चढ़ता। मै उस वक्त मंदिर में नहीं गया। बाहर से भगवान की मूर्ति की तरफ बस एक बार गुस्से से देखा और मन ही मन मे पुछा कि "तुमने ऐसा क्यो किया?" फिर मै पूजा और पिंकी से और कूछ भी ना कहते हुए चुपचाप वहाँ से चल दिया। चलते हुए अपने आप को मै बहुत ही भारी महसूस कर रहा था। दूरपर रघु खड़ा था। वह तेजी से मेरे पास आया और उसने पूछा, "क्या हुआ? क्या पूजा ने मेरे बारे में कुछ कहा? क्या उसने मुझे वहांसे जाते हुए देखा? मैंने कहा, "नहीं यार! मुझे नहीं लगता कि वो लड़की तुझे जरासा भी ठीक से देख पायी है....."
पांच साल बाद पूजा की शादी हो गयी। मैंने रघु से कहा कि पूजा तेरे लायक थी ही नहीं। तू उसे भूल जा। रघु ने इसपर कोई जवाब नहीं दिया। वह बस हलकासा मुस्कुराकर चल दिया। पूजा की शादी के तीन साल बाद रघु ने भी शादी कर ली। अब रघु के दो बच्चें हैं। अपनी लड़की का नाम वह 'पूजा' रखना चाहता था, मगर मैंने उसे ऐसा करने नहीं दिया। दो दिन पहले कई दिनोंके बाद रघु का फोन आया। मैंने कहा, "क्या यार? कितने दिनों बाद मुझे याद कर रहा है? यु.एस. जाकर लोग अक्सर अपनोंको भूल जाते हैं, मगर मुझे तुमसे तो ये उम्मीद न थी। कई दिन से तुम फेसबुक पर भी नहीं दिखाई दिए?" रघु ने कहा, "हाँ यार, अब इतना बीजी रहता हूँ कि फेसबुक वगैरह के लिए वक्त ही नहीं मिलता। मैंने लगभग महीने दो महीनों से फेसबुक यूज नहीं किया है, पता नहीं मेरा अकाउंट अभी एक्टिव है भी या नहीं।" उसी रात मैंने यूँही फेसबुक पर रघु का ईमेल वाला यूजरनेम डाला और पासवर्ड की जगह Pooja टाइप कर के देखा। मुझे पता चला कि रघु का यहवाला अकाउंट अभी तक एक्टिव है….!!!!!
पांच साल बाद पूजा की शादी हो गयी। मैंने रघु से कहा कि पूजा तेरे लायक थी ही नहीं। तू उसे भूल जा। रघु ने इसपर कोई जवाब नहीं दिया। वह बस हलकासा मुस्कुराकर चल दिया। पूजा की शादी के तीन साल बाद रघु ने भी शादी कर ली। अब रघु के दो बच्चें हैं। अपनी लड़की का नाम वह 'पूजा' रखना चाहता था, मगर मैंने उसे ऐसा करने नहीं दिया। दो दिन पहले कई दिनोंके बाद रघु का फोन आया। मैंने कहा, "क्या यार? कितने दिनों बाद मुझे याद कर रहा है? यु.एस. जाकर लोग अक्सर अपनोंको भूल जाते हैं, मगर मुझे तुमसे तो ये उम्मीद न थी। कई दिन से तुम फेसबुक पर भी नहीं दिखाई दिए?" रघु ने कहा, "हाँ यार, अब इतना बीजी रहता हूँ कि फेसबुक वगैरह के लिए वक्त ही नहीं मिलता। मैंने लगभग महीने दो महीनों से फेसबुक यूज नहीं किया है, पता नहीं मेरा अकाउंट अभी एक्टिव है भी या नहीं।" उसी रात मैंने यूँही फेसबुक पर रघु का ईमेल वाला यूजरनेम डाला और पासवर्ड की जगह Pooja टाइप कर के देखा। मुझे पता चला कि रघु का यहवाला अकाउंट अभी तक एक्टिव है….!!!!!
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