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गुरुवार, १८ डिसेंबर, २०१४

पेशावर स्कुल



माँ, डॉक्टरने जब कहा कि तेरे खून मे लोहे की कमी है तो कितनी सरपरस्ती से तुने खुदा से दुआ मांगी थी, कि या खुदा मेरी जिंदगी तो ढल चुकी, पर इतना करम कर कि मेरे बेटे को कभी लोहे की कमी ना हो।
तेरी दुआ कुबूल हुई माँ।
उन्होंने मेरे बदन में इतना लोहा दागा कि जिस्म में ना तो खूँ के लिए जगह बची, और न जाँ के लिए।
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मास्टरजी जो मैंने शरारत कि तो आपने फरमाया था ना कि दीवार के पास जाकर मै मुर्गा बन जाऊँ, और चाहे जितनी देर हो या जितना दर्द हो, मगर आपकी इजाजत मिलने तक त्यों ही बना रहूँ।
क्या खूब तामील की आपके हुक्म की मैंने !!
ऐसा बढ़िया मुर्गा बना की देखिये ये लोग भी धोखा खा गये, और हलाल कर दिए मुझे।
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वो पापा याद है ना आपको, किसीने मेरे कलर की बोतल उड़ेल दी थी घर की दीवार पर, आप मुझपर कितने गुस्सा हुए थे, और जब आपको पता चला की वो मैंने नहीं किसी और ने उड़ेली थी तो कैसे मुझे सीने से लगा लिया था आपने, आँख भर आई थी आपकी !!
स्कुल की दीवारोंपर देखिये फिर किसीने कितना लाल रंग उड़ेल दिया है,
लगता है आज भी आपको पता चल गया कि वो मैंने नहीं किया, तभी तो मेरे जिस्म को सीने से लगाकर आप यूँ फुट फुट रो रहें हैं।
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बदन भी कोई जगह है यारों खून भर कर रखने की?, इसे तो फर्श पर फैला दो, दीवारोंपर छिटक दो। बहा दो इतना कि रेंगता हुआ पहुँचे वहाँ गेट पर जहाँ सुबह छोड़ गयी थी माँ मुझे,
जबसे मैंने अपने जिस्म में उसे बाँध लिया है, अकेला पड़ा जमसा गया था खून मेरा,
बाहर निकल कर माँ के आँसुओंसे मिल जाए तो शायद सुकून महसूस हो उसे..!!

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