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बुधवार, २५ सप्टेंबर, २०१९

धूप की तितलियाँ उड़ जाएं

इक हयात में जितना वाज़िब था शायद हमें मिल गया है,
अब उम्मीद के धूप की तितलियाँ यां से उड़ जाएं
या पत्तोंके सुहाने लिबास दरख्तोंसे उतर जाएं
आवाजें कुछ लंबी खामोशियों में गिर जाएं
और रूह से खुशियों के सारे मानी खो जाएं
आसमाओं के साये दिल की गीली धरती में दफ़्न हो
उम्मीदों के सैलाब गुमनामी की मुट्ठियों में जब्त हों
तेरी हथेली से मेहंदी जैसे चुपचाप अलविदा होती है,
वैसे मेरा वजूद सारे एहसासों से मिट जाए... 

जो कभी सोचा भी नहीं था, वो हासिल किया है,
इक हयात में जितना वाज़िब था शायद हमें मिल गया है..!!
अब धूप की तितलियाँ यां से उड़ जाएं...




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