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गुरुवार, १० ऑक्टोबर, २०१९

कल तक जो बेगाने थे, जन्मों के मीत हैं

न रिश्तों के बंधन हैं, ना कोई रिवाज़, ना रीत है
कल तक जो बेगाने थे, जन्मों के मीत हैं

सोहबत की हवाएँ जो खुशबू बन के सीने में महकतीं हैं
बातों की आवाजें जो गीत बन के कानों में चहकतीं हैं
चेहरों की रौशनी जो दीदार बन के आँखों में दहकती है
हमें जिंदगी के ऐसे सारे हसीन तोहफों से प्रीत है
कल तक जो बेगाने थे, जन्मों के मीत हैं

साथ गुजारे इक इक लम्हे में जैसे कईं सदियाँ मिलीं
हमराह बन के जहाँ जहाँ से चले, फुलों की वादियाँ मिलीं
खुश्क सहाराओं में भी संगत की सुकून भरी नदियाँ मिलीं
ये मुक़द्दरों का नही, दिल के मरासिमों का निहित है
कल तक जो बेगाने थे, जन्मों के मीत हैं

कभी जो मै चलते हुए फिसला तो थामने चले आएँ
मुसीबतों के दौर आये तो ढाल बन के सामने चले आएँ
मुश्कील राहों पे भी मैने पुकारा तो साथ घुमने चले आएँ
ये दोस्त ही जिंदगी का सबसे अनमोल संचित है
कल तक जो बेगाने थे, जन्मों के मीत हैं

मैने नही मांगा था कोई सुरज की सुर्ख रौशनी का गांव
मैने तो नही चाही थी चांद के शीतल चांदनी की छांव
मैने नही लगाए थे अपनी किस्मत से ख्वाहिशों के दांव
इक कतरे का यूँ पुरे समुंदर से मिलना ही उसकी जीत है
कल तक जो बेगाने थे, जन्मों के मीत हैं, जन्मों के मीत हैं




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