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शनिवार, १८ जुलै, २०२०

कोई रिश्ता

कभी तू कोई मुरत कभी साया सा लगे
कभी बहुत अपना कभी पराया सा लगे

मैने कई लम्हों के अलाव जला के देखें हैं
तेरे बगैर गुजरा हर इक पल ज़ाया सा लगे

जब से तुम गये हो मेरी नजरोंसे बुझकर
हर इक अक्स आँखों में जलाया सा लगे

तेरे नजदीकी की महक जो खो गयी तो
मेरी सांसों का चमन मुरझाया सा लगे 

तेरे कंधे पे पीली धूप कैसी फुरसत से उतरी
जुल्फोंमें इक झोंका युँही बौखलाया सा लगे

जब जब उम्मीदों के चराग बुझने लगते हैं
तेरा एहसास फानुस बन के आया सा लगे

इक अरसा हो गया कोई जलसा किये हुए
अब बस तेरा रुठनाही कुछ मनाया सा लगे

जब भी चौथ का चांद देखता हूँ तो मुझे
तेरीही आँखोकी झील में नहाया सा लगे

नाम नही इसका कोई मगर कई जन्मों से
कोई गहरा रिश्ता तुझसे निभाया सा लगे



अलाव- मशाल/शेकोटी
ज़ाया- वाया जाणे
अक्स - प्रतिमा
फानुस- दिव्याला हवेपासून वाचविणारी काच



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