हा ब्लॉग शोधा

गुरुवार, २ जुलै, २०२०

जो हमारे दिल में था


हम उसे सारे जमाने से मांगते रहे, वो जो हमारे दिल में था
अकेले था तो साथ था मेरे, और तनहा भरी महफील में था

मुझे इक सफर चाहिए जिसमे हर कदम वो हमकदम चाहिए
मेरी खामोश सी चाहत का हासिल कब किसी मंजिल में था

लोग कहते होंगे दिल की बात, चांद सितारों की चमक के साथ
हमारे इजहार का दायरा तो बस आँखों की झिलमील में था

कितनी आसानी ने कर दिया उसने हमे खुद से यूँ दरकिनार
पर मेरी दिवानगी को मिटाने का हुनर कहाँ उस कातिल मे था

अब सीखना है सलीका मुझे भी जरा उसकी तरह बेरूखी का
दिल ने कोई अंजाम सोचा न था इसलिये बडी मुश्किल में था

तमाम हसरतें अपनी तो समंदर की गहराईयोंमे डूबने की हैं
हमारे दिल की चाहतों का बसर कब उथले साहील में था

उसने आँखो से जाने कितने रंग उतार दिये मुझे देखने के बाद
युं उजड जाने का सिला बदकिस्मती से मेरी ही हासिल मे था



..

कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा