एक साल ये कुछ ऐसे गुजर गया
कोई बोझ जैसे सीने से उतर गया
खिलखलाती मुस्कानों को कैद कर के
आंँखो में उदासी का पानी भर गया
सबको जीने मरने की जंग में उतारकर
जाने कितनी जिंदगियों को कुतर गया
मुखौटे पहनकर जीनेवाले चेहरों पर
ये मजबुरियोंके और नकाब धर गया
भूख जलते पांवों से रास्तोंपे चलती रही
जाने कौन घर गया और कौन मर गया
चलती फिरती दुनिया को लगाम लगाई
सारा जहाँ जैसे बेजान सा ठहर गया
एक ख्वाब मेरी आंखो में कत्ल हुआ
दिल टूटकर चारो तरफ बिखर गया
मार्च मे आया था एक बुरा सपना बनकर
चलो उसे खत्म करके ही दिसम्बर गया
एक साल ये कुछ ऐसे गुजर गया
कोई बोझ जैसे सीने से उतर गया
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