आँखो पे फिर नींद का पहरा नहीं देखा
जबसे हमने वो एक चेहरा नहीं देखा
जिंदगी को देखता हूँ तो एक दौड़ है बस
किसी मुसाफ़िर को यहाँ ठहरा नही देखा
इन आँखों में उतरने से पहले सोच लेना
मैंने कोई दरिया इतना गहरा नहीं देखा
हमारी कोई भी दुआ कभी कुबूल नही हुई
हमने खुदा से बड़ा कोई बहरा नही देखा
हर चाल, हर बाजी अपनी नाकाम ही रही
हमने खुद से कमज़र्फ कोई मोहरा नही देखा
तब धुँआ कर दिया अपने सारे ख़्वाबोंको
जब उन्होने कहा हमने कोहरा नही देखा
परिंदोंने बचपन का घोंसला क्या छोड़ दिया
बूढ़ी शाख को फिर किसीने हरा नही देखा
किसीने कहा अपने अंदर के रावण को जलाओ
फिर एक भी दिन न गुजरा कि दशहरा नही देखा
दिल मे कुछ और रखते हो, जुबाँ पे कुछ और
राहुल हमने कोई इंसाँ तुमसा दोहरा नही देखा
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