क्या इक बार फिरसे अजनबी बन गएँ हैं हम दोनों
बिन कुछ कहे ही शर्त ए जुदाई मान गएँ हैं हम दोनों
न चैन है जरा हमको, और न तुमको थोडा भी करार है
क्यूँ यूँ सुलगती आग में जलने पे ठन गएँ हैं हम दोनों
कोई शिकवा नही रखा, कोई गीला भी नही किया
कैसी रंजीदगी है कि बिना रुठे ही मन गएँ हैं हम दोनों
बेखुदी में सोचते रहें की उलझ रही हैं दो रुहें, जब कि
आसानी से सुलझ गया जो रिश्ता बुन गएँ हैं हम दोनों
कितना कुछ कहना है आपसे मगर कह नही पातें हैं
ऐसी खामोशी है कि जैसे हो बेजुबान गएँ हैं हम दोनों
जिंदगीभर हमें आप के साथ चलना था मेरे हमसफर
पता ही न चला कब अलग राहें चुन गएँ हैं हम दोनों
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