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शुक्रवार, २९ मार्च, २०१९

यूंही तेरी खामोशी से

यूंही तेरी खामोशी से मेरी उम्मीद का पहाड पिघल जाता है
उफक पे सूरज जरा ठहरता है, और मायुस निकल जाता है

कुछ तिनके, थोडीसी रुई, बरामदे मे रोज गिराती है चिडीया
मेरे मकान की किश्त़ों में ही, बन उसका भी महल जाता है

यूं तो आसमान का हर तारा भी होता एक बडा पत्थर ही है
बस किसीसे बेइंतेहा मुहब्बत कर बैठता है, तो जल जाता है

मैं जज्बातों का उमडता लावा कब तक थाम पाऊंगा
अब छोटे छोटे सदमों से भी, अक्सर धीरज ढल जाता है

बिस्तर पे बगल में पड़ी रहती है, नींद मेरे जानिब नहीं आती
रातभर प्यासा तकीया पलकोंसे गिरी शबनम निगल जाता है  

और कितने बरस यूँही सहमा सहमा सा चुप सा रहूंगा मैं
एक नवजात बच्चा भी साल दो साल ही में संभल जाता है

दिल भी कितना नासमझ है, ये उस शख्स से मुहब्बत करता है
जो फल तो तोडना चाहता है,  मगर फ़ूलोंको कुचल जाता है

शुक्रवार, ८ मार्च, २०१९

तुम

आगे या पीछे नहीं, मेरे बाजू, मेरे साथ रहना तुम
ना दासी कहो ना देवी, मुझे अपना साथी कहना तुम

तुम्हारे प्यार की खातीर खुद को मिटा दुँगी लेकीन
मै अपना वजूद ही खो दूँ, ये ना कभी चाहना तुम

मुझे कईं दफा थामना, मेरी मदद भी करना मगर
खुद को मेरा मसीहा समझने के गुरूर में न बहना तुम

मेरी जिंदगी के हर अध्याय में तुम शरीक रहोगे मगर
कुछ पन्ने अकेले मेरे हैं, इस बात को भी सराहना तुम

बस एक खुबसुरत जिस्म नहीं, पुरी शख्सियत हुँ मै
जो मुझे इक चीज समझे, उन दस्तुरों को ढहना तुम

मै तुम बिन अधुरी हुँ, तुम भी मेरे बगैर मुकम्मल नहीं
मै तुम्हारी नायाब उपलब्धि, मेरा सबसे अजीज गहना तुम

माँ बहन बेटी पत्नी यही सबसे बडे किरदार नहीं मेरे
रिश्तों से परे मेरी अपनी पहचान है, ये तथ्य सहना तुम

औरत हुँ, अबला नहीं, बिलकुल तुम्हारी समकक्ष हुँ मै
तुम्हारी हमसफर हमदर्द हुँ, और मेरे हमदर्जा रहना तुम

बुधवार, ६ मार्च, २०१९

इजहार

होठोंतक आकर हर बार वापिस लौट जातीं हैं
इश्क की बातें भी समंदर की लहरों जैसी होतीं हैं

छलक तो जातें है जज्बात कईं दफा मगर
साफ साफ कोई बात जुबाँ पे नही आती है

यूं तो किया है हमने जिक्र प्यार का बहुत लेकीन
कुछ इस अंदाज से कि वो समझ नहीं पाती है

ऐसे तो दुनियाभर की बातें बुलवा लो हमसे
बस इसी काम में हिंमत जवाब दे जाती है

ये मर्ज सिर्फ अकेले मेरा ही नहीं शायद
वो भी तो कुछ कहने में कितना कतराती है

कह तो दे हम लेकीन कहीं वो इनकार न कर दें
इस खयाल से हमारी जान से जान चली जाती है

ये खुबसुरत जज्बात इक पल में जुर्म बन जायेंगे
यही सोच कर जुबाँ इजहार ए इश्क से घबराती है

रविवार, ३ मार्च, २०१९

इक मोर

कल उसने चांद जड लिया अपने काले दुपट्टेमें
मै आँखोमें धुआँ लेकर आसमान ताकता रहा

सुबह उसने मेहंदी लगी हथेली रख दी चेहरे के आगे
और मुझे उसकी लकीरोसे उगता सुरज दिखाई दिया

हर बात याद नही आती, पर हर बार याद आती है
मै टूटकर बिखरता हूं, उसकी अंजलि भर जाती है

इक मोर विरान टहनी पे बैठा अकेले क्या सोचता होगा
रंग जामुनी हो गये, फुलों के बदन को क्या चुभता होगा

अनोळखी

तो मनोमन बोलत राहतो तिच्याबद्दल, तिच्याशीच.!

त्याच्या मनात मांडलेली असते एक पुष्पशाला,
बागडणारी फुलपाखरे, हसणारी फुले,
कित्येक विविधरंगी पतंग उडत असतात त्याच्या आकाशात !!

एक अथांग गहीरा तलाव असतो त्याच्या नजरेत,
पापण्यांना टेकून बसलेला!

एका मंत्रित वाटेवर तो बेभानपणे पळत असतो,
तिच्या पाउलखुणांचा मागोवा घेत.!

तिचे शेकडो आभास दाटून येतात,
अन् मोरपिसांच्या सरी कोसळत राहतात त्याच्या ओंजळीत.!

तिच्या ओढणीचे रेशीम फडफडत असते,
होडीच्या शीडावर,
अन होडी एका अवखळ गर्तेत फिरत असते गोल गोल....

रात्रभर मनाचा तळ ढवळूनही
भानावर न आलेले स्वप्नांचे फेसाळ गहिवर,
पहुडलेले असतात किनाऱ्यावर निपचित..!!

तृणपात्यांवर झोका घेत असतात,
तिने शिंपडलेल्या सड्याचे दवबिंदू.!

चंद्र, आकाश, सूर्य, आरसा,
तिचा चेहरा उमटत असतो सगळीकडे आळीपाळीने..

तिचे हात तो आपल्या हातांत घट्ट धरून ठेवतो,
अन सुगरणीचे घरटे गुंफले जाते.!
तिचे केस ओघळतात चेहऱ्यावर त्याच्या,
अन ढग काळ्या रंगात माखून जातात..
ती डोळ्यांवर हात ठेवते त्याच्या,
अन् तत्क्षणी त्याची रात्र होते.

तिच्या नुसत्या विचाराने नादमधुर पडघम वाजू लागतात कानांत,
अन निनादत राहतात शहारलेले तरंग पाण्यावर.

तो तिला एक आर्त साद घालतो तेव्हा,
क्षितिजावर ओली कंपने आदळतात,
आणि तिचे नाव कोरड्या प्रतिध्वनींत गुंजत राहते कितीतरी वेळ.

अष्टौप्रहर ती त्याच्यात सामावलेली असते
त्याचे रोमरोम तिच्या आभासांचे कोंदण होते.

तो पुन्हा पुन्हा बोलत बसतो तिच्याशी,
पण तिला कधीही ऐकू येत नाही...

.....ती त्याच्या क्षितिजाबाहेर कोण्या अनोळखी विश्वात राहते..!!

शनिवार, २ मार्च, २०१९

लफ्ज

कागज पे कहाँ सजते थे अशआर कई रोज
अल्फाजों का भी तो मानी से चल रहा था जुआ

महफिल में मेरी कहाँ बची थी रौनक कोई,
हद ए निगाह तक बस फैला था गहरा धुआँ

न उम्मीद थी मन में, न था दिल को कोई गुमान
पर यहाँ माँगी और वहाँ मेरी कुबूल हुई दुआ

ख्वाहीश तो थी कि वे बस कोई इक नज्म सुने
और हमको तो जैसे रेगीस्तान में मिल गया कुआँ

हाँ, कल ही तो यारों साथ मेरे ये हसीं वाकेया हुआ
खुद उनके नाजुक लबोंने मेरे लफ्जों को छुआ