होठोंतक आकर हर बार वापिस लौट जातीं हैं
इश्क की बातें भी समंदर की लहरों जैसी होतीं हैं
छलक तो जातें है जज्बात कईं दफा मगर
साफ साफ कोई बात जुबाँ पे नही आती है
यूं तो किया है हमने जिक्र प्यार का बहुत लेकीन
कुछ इस अंदाज से कि वो समझ नहीं पाती है
ऐसे तो दुनियाभर की बातें बुलवा लो हमसे
बस इसी काम में हिंमत जवाब दे जाती है
ये मर्ज सिर्फ अकेले मेरा ही नहीं शायद
वो भी तो कुछ कहने में कितना कतराती है
कह तो दे हम लेकीन कहीं वो इनकार न कर दें
इस खयाल से हमारी जान से जान चली जाती है
ये खुबसुरत जज्बात इक पल में जुर्म बन जायेंगे
यही सोच कर जुबाँ इजहार ए इश्क से घबराती है
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