कल उसने चांद जड लिया अपने काले दुपट्टेमें
मै आँखोमें धुआँ लेकर आसमान ताकता रहा
सुबह उसने मेहंदी लगी हथेली रख दी चेहरे के आगे
और मुझे उसकी लकीरोसे उगता सुरज दिखाई दिया
हर बात याद नही आती, पर हर बार याद आती है
मै टूटकर बिखरता हूं, उसकी अंजलि भर जाती है
इक मोर विरान टहनी पे बैठा अकेले क्या सोचता होगा
रंग जामुनी हो गये, फुलों के बदन को क्या चुभता होगा
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