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शुक्रवार, २९ मार्च, २०१९

यूंही तेरी खामोशी से

यूंही तेरी खामोशी से मेरी उम्मीद का पहाड पिघल जाता है
उफक पे सूरज जरा ठहरता है, और मायुस निकल जाता है

कुछ तिनके, थोडीसी रुई, बरामदे मे रोज गिराती है चिडीया
मेरे मकान की किश्त़ों में ही, बन उसका भी महल जाता है

यूं तो आसमान का हर तारा भी होता एक बडा पत्थर ही है
बस किसीसे बेइंतेहा मुहब्बत कर बैठता है, तो जल जाता है

मैं जज्बातों का उमडता लावा कब तक थाम पाऊंगा
अब छोटे छोटे सदमों से भी, अक्सर धीरज ढल जाता है

बिस्तर पे बगल में पड़ी रहती है, नींद मेरे जानिब नहीं आती
रातभर प्यासा तकीया पलकोंसे गिरी शबनम निगल जाता है  

और कितने बरस यूँही सहमा सहमा सा चुप सा रहूंगा मैं
एक नवजात बच्चा भी साल दो साल ही में संभल जाता है

दिल भी कितना नासमझ है, ये उस शख्स से मुहब्बत करता है
जो फल तो तोडना चाहता है,  मगर फ़ूलोंको कुचल जाता है

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