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शुक्रवार, १२ जुलै, २०१९

चाँद

ये चाँद है, ये मेरा इश्क है

किसी रात जब तुमसे बात करता हूँ
खिलखिलाकर मेरी पूरनमास हो जाती है

तुम भी मगर अजीब शख्स हो,
तुरंत अपनी बेरुखी की कुल्हाड़ी चलाकर
रोज थोड़ा थोड़ा काट देती हो
मेरे चाँद को...
सारे टुकड़े बिखरे पड़े रहते हैं
दिल की खलाओं में

जानाँ मै जब तेरे इश्क से जाता हूँ
तो जाँ से भी जाता हूँ

फिर अमावस की कोख से मुझमें
जान पैदा हो जाती है
और मै अपने भरम का इक इक टुकड़ा उठाकर
रत्ती रत्तीभर जोड़ लेता हूँ
फिर अपना चाँद

और फिर किसी दिन तू दुबारा
अपनी हकीकत के खंजर लेकर
मेरा नया चाँद उधेड़ने लगती है

मेरे वहम, मेरे भरम अनगिनत है,
मै अनगिनत दफा
अपना चाँद फिर फिर बनाता रहूँगा



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