हा ब्लॉग शोधा

शुक्रवार, १२ जुलै, २०१९

ना बादल बरसे

कल तुमसे जब मै बात कर रहा था
बादल इकठ्ठे हो रहे थे फलक पे

कुछ आसमानी साये उतर आये थे मुझमे
और नाच रहे थे चारों ओर

कितनी खुशनुमा हवा बह रही थी मुझे छूकर

वहाँ उस पहाड़ी के पार
उस नीले मकाँ की छत से
कुछ लहराती लाल पिली ओढ़नियों के पीछे से
तांक रहा था सूरज

फोन से उठ के कुछ ठंडी सदाएं
बह रही थीं मेरे सीने पर
और धरतीने पेड़ोंके हजारों हाथ
फैलाये थे आसमान की ओर

मेरे अंदर ओस ज़मने लगी थी
और कुछ काले बादलोंसे भी
उँगलियाँ बढ़ आयीं थी नीचे की तरफ

न जाने कितनी देर, कितने लम्हे
यही एक समा बना रहा
मगर आखिरतक
ना तो बादल बरसे, और ना मै.....



... 

कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा