जब मेरे जिस्म की लौ
तुम्हारी रूह से टकरा के
धुंए में तबदील हो गई थी
और उसके बाती की बची हुई लाल चिनगारी
तुमने अपनी मांग पे रख ली थी
मेरा नाम देकर
फूलों की कुछ नाजुक सी पंखुड़ियाँ
बदन पे महसूस की थी मैंने
और खुद के होने का एहसास
हथेली पर लेकर
फूँक मार के उड़ा दिया था हवा में
पता नहीं वक्त के
किस सिरे से लटककर
मेरी रूह फिर
उसी जिस्म में लौट आयी थी...
..तुम्हे पहली बार छूकर जो पिघला था मेरा जिस्म
...
तुम्हारी रूह से टकरा के
धुंए में तबदील हो गई थी
और उसके बाती की बची हुई लाल चिनगारी
तुमने अपनी मांग पे रख ली थी
मेरा नाम देकर
फूलों की कुछ नाजुक सी पंखुड़ियाँ
बदन पे महसूस की थी मैंने
और खुद के होने का एहसास
हथेली पर लेकर
फूँक मार के उड़ा दिया था हवा में
पता नहीं वक्त के
किस सिरे से लटककर
मेरी रूह फिर
उसी जिस्म में लौट आयी थी...
..तुम्हे पहली बार छूकर जो पिघला था मेरा जिस्म
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