हा ब्लॉग शोधा

शुक्रवार, १२ जुलै, २०१९

गेंद

कल तुम्हे जब
टेबल टेनिस सीखा रहा था
इतनी जोर से दे मारी थी
तुमने सूरज की गेंद
कि खो ही गयी

बदले में मैंने चाँद पकड़ाया
तो तुम नहीं मानी
कहा कि ये सफ़ेद मैली गेंद ठीक से नहीं दिखती
और खेल छोड़कर चली गई

रातभर ढूंढता रहा मै तुम्हारी मारी वह गेंद
फिर आखरी पहर
दूर पूरब में मुझे वो दिखाई दी काले पर्दे के पीछे

चलो अब फिर से खेलतें हैं
मैंने उसे पूरब से उठाकर
अपनी नीली हथेली पे रख लिया है


... 

कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा