आज रात फिर
ख्वाबोंके नाख़ून कुरेदते रहेंगे
मेरी रूह को..
कोई साया बून्द बून्द खून
ऐसे चूसता रहेगा आंखोंसे
कि सुबह तक बस थोड़ी ओस बची रहेगी...
हसरतों के जुगनू ख्वाबोंके जंगल से
उड़ जायेंगे या मर जायेंगे..
फिर सुबह थपेड़े मारकर निकाल देगा
सूरज चाँद को मेरे आँगन से!!
मै बेबस सा अपनी लकीरोंमे
तेरा नाम ढूंढता रहूँगा...
एक बार तू ही क्यों साफ़ साफ़
मुझे कह नहीं देतीं?
कि जो मेरी तक़दीर में ही नहीं
वो लकीरोंमें कहाँसे होगा..!!!
...
ख्वाबोंके नाख़ून कुरेदते रहेंगे
मेरी रूह को..
कोई साया बून्द बून्द खून
ऐसे चूसता रहेगा आंखोंसे
कि सुबह तक बस थोड़ी ओस बची रहेगी...
हसरतों के जुगनू ख्वाबोंके जंगल से
उड़ जायेंगे या मर जायेंगे..
फिर सुबह थपेड़े मारकर निकाल देगा
सूरज चाँद को मेरे आँगन से!!
मै बेबस सा अपनी लकीरोंमे
तेरा नाम ढूंढता रहूँगा...
एक बार तू ही क्यों साफ़ साफ़
मुझे कह नहीं देतीं?
कि जो मेरी तक़दीर में ही नहीं
वो लकीरोंमें कहाँसे होगा..!!!
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