आज पहली बारिश में भीगते हुए
अपने कंधे पे, सर पे,
कितनी बुँदे चुन कर जमा की थीं मैंने
..कि कभी तुम मिलो तो पहना दूँ.!
पानी पे पैरोंसे कुछ छपाकों की
धुनें भी बजाईं थी,
..तुम्हे सुनाऊँगा इक दिन.!
पहाड़ ने फूँक मार कर अपने सिर से
मेरी तरफ उड़ायी थी कुछ घटाएँ,
..तुम होती तो आधी आधी बाँट लेतें।!
उस सडकपर चलते हुए कितने पेड़ झुककर सलाम कर रहे थें
और पत्तियाँ ताली बजाकर ख़ुशी का इजहार कर रहीं थीं
तुम उस वक्त मेरे साथ होती तो......
....पता नहीं हर छोटे बड़े ख़ुशी के पल में
मुझे तुम ही क्यूँ याद आती हो.....
...
अपने कंधे पे, सर पे,
कितनी बुँदे चुन कर जमा की थीं मैंने
..कि कभी तुम मिलो तो पहना दूँ.!
पानी पे पैरोंसे कुछ छपाकों की
धुनें भी बजाईं थी,
..तुम्हे सुनाऊँगा इक दिन.!
पहाड़ ने फूँक मार कर अपने सिर से
मेरी तरफ उड़ायी थी कुछ घटाएँ,
..तुम होती तो आधी आधी बाँट लेतें।!
उस सडकपर चलते हुए कितने पेड़ झुककर सलाम कर रहे थें
और पत्तियाँ ताली बजाकर ख़ुशी का इजहार कर रहीं थीं
तुम उस वक्त मेरे साथ होती तो......
....पता नहीं हर छोटे बड़े ख़ुशी के पल में
मुझे तुम ही क्यूँ याद आती हो.....
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