हा ब्लॉग शोधा

शुक्रवार, १२ जुलै, २०१९

बैठा हूँ

मै अपनी बेचैनियों के ये कितने बोझ, कांधे पे उठाये बैठा हूँ
तेरे एक प्यारे से भरम में मै, अपने आप को लुटाये बैठा हूँ

मेरे सारे ख़यालोंमे एक आप की चाहत ही उभरती है
हर दूसरी हसरत को मै, अपने दिल से मिटाये बैठा हूँ

न तो बरसता है मुसलसल पानी, न गुलाबी धुप खिलती है
मै अपने दामन में समेटे कुछ उदास सी घटाएँ बैठा हूँ

मै दिन में भी तुम्हे अपने ख्वाबो में बुनता रहता हूँ
और नींदों को अपनी तमाम रातोंसे घटाए बैठा हूँ

खुद से बेखुद होकर मैंने तुझे ही अपना खुदा बनाया है
और अपनी रूह को इक तेरे ही अक्स से सटाए बैठा हूँ

अपने ही जहन में मैंने तेरे साथ एक हसीं जहाँ बसाया है
तुझे बसाने के लिए अपनी दुनिया से मै जमाने को हटाए बैठा हूँ



... 

कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा