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शुक्रवार, १२ जुलै, २०१९

अधूरीसी मुहब्बत

मुझे अपनी इस अधूरीसी मुहब्बत से मुहब्बत है
आपकी बेरुखीसे पलती मेरी बेकरारी से मुहब्बत है

मेरी एक हसीं दुनिया है मेरे वहमों की मेरे भरमों की
मुझे इन वहमों-भरम के झूठेमूठे एहसासों से मुहब्बत है

ये इक बेचैनी सी जो हरदम बदन में बहती रहती है
मुझे अपनी मर्ज-ए-मुहब्बत के इस दर्द से मुहब्बत है

तुम इनमे ख़्वाब बनके रहती हो या अश्क बनके बहती हो
मुझे इसीलिए अपनी इन दो आँखों से मुहब्बत है

न इश्क का इजहार करीए न मेरे प्यार से इनकार करीए
मुझे आपकी इस अनजान सी खामोशी से मुहब्बत है

ये घना कोहरा, ये धुंदले धुंदले से तेरे तमाम चेहरे, ये सब
मेरी रतजगोंके हमसफ़र हैं, मुझे इन बेरंग सायों से मुहब्बत है

तुम कहीं मुझे चाहकर मेरी चाहत को मुकम्मल न कर देना
मुझे जज्बातोंके इस इकतर्फा दौड़ते बहाव से मुहब्बत है



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